नींद में सताती हैं, कभी सुब्ह आ जाती हैं, ज़िंदा होने का एहसास दे जाती हैं यादें, मायूसी जब जब दिल में छा जाती है, शबनम सी तब पलकों से गिरती हैं यादें, अब तो दूर बहुत है, तेरा साया मुझसे, मगर, तेरे आस पास होने का शुब्हा सी हैं यादें, तन्हाई में कभी महफ़िल होती हैं यादें, कभी महफ़िल में तन्हा कर देती हैं यादें, टूटे सपनो के खंडरों में फिरती हैं यादें, अक्सर हमें बेवक़्त घेर लेती हैं यादें, छोड़ कर चले गए लम्हे जो दामन मेरा, क्यूँ उन लम्हों से लिपटती रहती हैं यादें, नादाँ हैं जो सोचती हैं रखेगी समेटे वो, गुज़रे मौसमों को कहाँ ला पाती हैं यादें, अब तो दूर बहुत है, तेरा साया मुझसे, मगर, तेरे आस पास होने का शुब्हा सी हैं यादें, तन्हाई में कभी महफ़िल होती हैं यादें, कभी महफ़िल में तन्हा कर देती हैं यादें,
मायूसी - hopelessness, despairg
शबनम – dews
शुब्हा – doubt, suspicion
नादाँ – innocent, ignorant
समेटे - gathered or collected
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